ये मेरी कहानी भी नहीं है
ये मेरी जु़बानी भी नहीं है
जिस क़लम से मैं लिख रहा हूं
वह हर एक मंज़र बयां कर दें
ये इतनी सयानी भी नहीं है
वक़्त के किसी मोड़ पर
अचानक से टकरा गए
ये घटनाओं से भरा घड़ा है
मेरे मन में जैसे किसी कच्ची याद सा पड़ा है
पर इस के ज़ख्म इस धरा पर इतने गहरे हैं
कि हर बार ये मेरी स्याह के सामने छपने को खड़ा है
चमकने को जो सितारा तैयार बैठा था
एक पल में जैसे आंखों से ओझल हुआ हो
चुभ रहा था कुछ लोगों के दिल में
इसलिए लगता है जैसे
उसकी जिंदगी, जिंदगी ना हो जुआ हो
वो उन राहों में जिस बेबाकी से चल रहा था
धीरे-धीरे औरों की आंखों में वो
दुश्मन सा पल रहा था
पर जब तक उसे अंदाजा अपने आसपास के कांटो का हुआ आग फैल चुकी थी
और उसका हर सपना धुआँ-धुआँ हुआ
ये मेरी कहानी भी नहीं है
ये मेरी जु़बानी भी नहीं है
और ये जो इतने देर से मैं सुना रहा हूं
वो इतनी पुरानी नहीं है
खंगाल के देख अपने मस्तिष्क को मनुष्य
हजारों कहानियां मिलेंगी तुझे
जो हादसों में तब्दील हो कर रह गई
द्वारा
देशमुख पटेल
राजनीति विज्ञान (प्रथम वर्ष)