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मेरे सपनों का घर 

कहते हैं सपने देखना कभी नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि वही एक एेसी जगह है जहाँ सभी शोर-गुल से दूर, परंपराओं से दूर, नियमों से दूर, आप अपने जीवन की मनचाही उड़ान भर सकते हैं। मनचाहा आशियां बसा सकते हैं। और यदि आपमें जज़्बा है, जुनून है, कुछ कर दिखाने की आग है, तो ये सपने सपनों तक ही सीमित नहीं रहते, हकीकत में बदल जाते हैं। मैंने भी एक सपना देखा है और उसी का कविता रूपांतरण कुछ इस तरह से है।

एक घर बनाऊँगा, 

उसमें आशियां बसाऊँगा। 

धरती से दूर, आसमां से दूर, 

चाँद सितारे और समां से दूर। 

जहाँ न शोर होगा, न ज़ोर होगा, 

बस खुशी से झूमता हुआ सुंदर-सा मोर होगा। 

उसी का हाथ पकड़ आज़ाद पंछी बन जाऊँगा। 

एक घर बनाऊँगा, 

उसमें आशियां बसाऊँगा। 

आत्मबल की नींव, परिश्रम की दीवार, 

साहस भरी छत से वह होगा तैयार। 

जात-पात नक्सलवाद की जब होगी बौछार, 

इसकी प्रेम रूपी वायु तब देगी इन्हें मार।

देख यह नज़ारा, तब खुशी खूब मनाऊँगा,

एक घर बनाऊँगा, 

उसमें आशियां बसाऊँगा। 

मेरे सपनों का ये घर

जब हकीकत में बदल जाएगा, 

तब लेकर पूरे जहां को मैं इसमें चला जाऊँगा।

या एेसे हज़ारों घर जगह-जगह बनाऊँगा। 

हाँ, मैं एक नहीं, एेसे हज़ारों घर बनाऊँगा,

उनमें दुनिया बसाऊँगा, 

उनमें दुनिया बसाऊँगा।
                         

                        – Veenus 

                         B.Sc. (H) Physics (2nd year)

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